नई पुस्तकें >> योगासन एवं प्राणायाम योगासन एवं प्राणायाममनोज आगरा
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योगासन और प्राणायाम करके कोई भी स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मस्तिष्क को प्राप्त कर सकता है
दो शब्द
योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है। जिस तरह भगवान श्री राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े हैं उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते हैं। बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को खोज निकालने की जिस पर हमें गर्व है।
माना जाता है कि योग का जन्म भारत में ही हुआ मगर आधुनिक कहे वाले समय में अपनी दौड़ती-भागती जिंदगी से लोगों ने योग को अपनी दिनचर्या से हटा लिया। जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर हुआ। मगर आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का बोलबाला है और निःसंदेह उसका श्रेय भारत के ही योग गुरुओं को जाता है जिन्होंने योग को फिर से पुनर्जीवित किया। वर्तमान में इस सिलसिले में सर्वधिक मशहूर नाम है योगगुरु रामदेव। जिन्होंने पतंजलि योग पीठ की स्थापना कर रखी है।
योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है। यम, नियम तथा योगासन हमारे शरीर को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक हैं।
प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि मानसिक साधन हैं। प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है, अर्थात् यह शारीरिक भी है और मानसिक भी। प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह होता है।
योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न विशेष साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।
योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।
आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करने वाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।
योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती हैं। योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारू रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होती।
योगासन मेरुदण्ड रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।
योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है दुबला-पतला व्यक्ति तंदुरुस्त होता है।
योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं
योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जाग्रत होती हैं और आत्मासुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।
योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अतः मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।
योगासन श्वास क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।
योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप है क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारू रूप से करते हैं।
आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।
आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वालेको चश्मे की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिसस शरीर पूर्णतः स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का आधकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल बाहय शरीर को ही प्रभावित करने का क्षमता रखती हैं, जब कि योगासन मानव का चहुमखी विकास करते है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है यह पस्तक आपको स्वस्थ शरीर और स्वस्थ माता प्रदान करने में प्रभावी भूमिका अदा करेगी।
शुभकामनाओं सहित!
- प्रकाशक
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- योगासन एवं प्राणायाम